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सफर - मौत से मौत तक….(ep-37)






यमराज भागकर सीधे नंदू के कमरे में घुसा, नंदू अभी बेड में बैठा था और एक तस्वीर को देखकर रो रहा था.
यमराज ने पास जाकर देखा तो वो तस्वीर गौरी की थी।

"गौरी तुम क्यो चली गयी थी मुझे छोड़कर……क्यो मुझे अपने साथ नही ले गई….क्यो????" नंदू रोते हुए बोला,
फिर अपने बहते आंसुओ को रोकते हुए एक हाथ से अपने आंसुओ को पौछते हुए बोला
"समीर को लगता है मैं तुम्हारी मौत का जिम्मेदार हूँ, और वो मुझे गलत समझ रहा है….हमारा समीर अब बदल गया है गौरी….अब वो पुराना समीर नही रहा….मैं हमेशा तुमसे उसकी तारीफ किया करता था। जब भी समीर ने कोई अच्छा काम किया तो मैं हमेशा चुपके से आकर तुम्हे बता दिया करता था। लेकिन आज……आज कुछ नही बताऊंगा मैं तुम्हें" कहते हुए नंदू ने फ़ोटो वापस दीवार पर टांक दी।

अब नंदू ने आकर खिड़की बंद किया और दरवाजे पर भी कुंडी लगा दी।

"ओह माय गॉड….अब ये फांसी लगाएगा" यमराज ने सोचा।


*****


दूसरी तरफ समीर अपने पसंदीदा जगह पर जाकर गाड़ी को रोक लेता है। यहां वो तब आता था जब बहुत दुखी होता था, एक छोटी सी झील के किनारे दीवार पर बैठकर उसे शुकुन मिलता था। आज से पहले समीर यहां तब आया था जब उसके बाकी दोस्त एलएलबी का कोर्स करने वाला फार्म भर चुके थे, लेकिन समीर के पास पैसे नही थे, और पापा रिक्शा चलाते है और हर महीने दो हजार रुपये भेज देते है इससे ज्यादा की उम्मीद पापा से नही थी उसे। उस दिन भी यही पर आकर  रोया था, और कभी भगवान से तो कभी अपनी माँ से शिकायत कर रहा था कि उसे गरीब क्यो बनाया, हालांकि उसने कभी गरीबी देखी ही नही थी फिर भी वो चाहता था जितने पैसे बाकी लड़को के पास होते है उतने ही उसके पास भी हो….
आज भी वो इसी झील के किनारे आ बैठा था और अपने भगवान और अपनी माँ से शिकायत कर रहा था।

नंदू अंकल भी उसके पीछे पीछे आ पहुंचे थे, और उसके बगल में ही बैठ गए।

समीर शांत बैठा था, झील की तरह, हालांकि नदियों की तरह लहरे उठ रही थी उसके दिमाग मे….

"कैसे कैसे दिन देखने बाकी है रे भगवान….और कैसे कैसे दिन दिखायेगा तू मुझे" समीर ने कहा।

नंदू अंकल ने इस बात का जवाब दिया- "दिन….दिन तो तूने देखे ही नही बेटा….दिन तो अब देखेगा….अगर बुरे दिन देखे होते तो आज तक तू संभल जाता। कभी ठोकरें खाई होती तो तू चलना सीख जाता। लेकिन मैंने कभी तुझे मुश्किले नही दिखाई, जब भी कोई मुश्किलें आयी हमेशा तुझसे छिपाता रहा मैं….लेकिन अब समझ आ रहा कि माँ बाब को औलाद के हिस्से की हर ठोकरें खुद नही खानी चाहिए,कभी कभी उन्हें भी उन सभी परेशानियों से वाकिफ होने देना चाहिए जो भगवान उनके हिस्से में लिखता है लेकिन औलाद की मोह माया के जाल में फंसकर माँ बाब वो सारी तकलीफें खुद उठाने लगते है। कुछ कुछ तकलीफें अगर बच्चे सह भी लेंगे तो क्या हुआ, मजबूत ही होंगे और सबक भी सीखेंगे" 

समीर हर थोड़ी देर में कुछ बड़बड़ाते हुए रोने लगता था।
तभी अचानक एक प्यारा सा हाथ समीर के सिर पर फेरा जाने लगा। जिसका एहसास समीर को नही हो रहा था। रात के अंधेरे में झील के किनारे  सड़क के स्ट्रीट लाइट से आ रही रोशनी के सहारे समीर बैठा था और उसके बगल में बैठा था नंदू अंकल……
लेकिन अब नंदू अंकल ने देखा की एक औरत भी वहां आ चुकी थी….जिज़ नंदू अंकल देख पा रहा था लेकिन समीर नही….

नंदू अंकल के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा- "गौरी"

नंदू समीर के पास खड़ी गौरी को देखता रह गया।

"मैं तुझसे बहुत नाराज हूँ, तूने बहुत गलत किया है इस बार……और इस बात के लिए मैं तेरा साथ कभी नही दूँगी.
तूने अपने पापा का दिल तोड़कर मेरा भी दिल दुखाया है, मैं तुझे कभी माफ नही करूंगी" गौरी ने समीर से शिकायत की लेकिन जिस तरह समीर नंदू अंकल की नही सुन सकता था उसी तरह गौरी की भी नही। इसलिये समीर शांत झील के उस पानी मे आये आसमान की परछाई को निहार रहा था।
उसके आंखों में भी आंसू थे,

नंदू खड़ा उठा और गौरी के पास जाकर बोला- "गौरी तुम तो मुझे गलत नही समझती ना….तुम तो जानती हो मैं ऐसा कुछ नही कर सकता, जबकि मैंने तो उसकी मदद की थी, आज सुबह ही जब मैंने पुष्पाकली को फोन पर बात करते हुए सुना कि उसे पैसे की सख्त जरूरत है, हॉस्पिटल में उसका बच्चा एडमिट है, और अगराज पैसे जमा नही किये तो ऑपरेशन और आगे के लिए टाल देंगे, इशानी मैंडम ने भी पैसे देने से मना कर दिया। ये सुनते ही मुझे बाबूजी की याद आई, उनकी मौत का कारण सिर्फ बीमारी ही नही पैसो की कमी भी थी। मैं तो कर्ज़ लेकर उनका हर सम्भव इलाज करने को तैयार था लेकिन बाबूजी मुझे कर्ज में नही देखना चाहते थे। उन्हें पता था इलाज से भी कोई फर्क नही पड़ेगा। इश्लिये उन्होंने सरकारी दवाई ही लेना चाहा। मैं नही चाहता था कि पुष्पाकली का बच्चा भी पैसो की कमी की वजह से मर जाए। इसलिये मैं हॉस्पिटल में जाकर सबसे छिपकर अपने छिपाए हुए पैसे जमा कर आया। ये बात अगर पुष्पा को बता दी होती तो वो शाम को पैसे के लालच में आज इतना बड़ा इल्जाम मुझपर नही लगाती" नंदू अंकल ने गौरी को सफाई देते हुए कहा।

लेकिन गौरी ने ना ही नंदू की तरफ देखा ना उसकी आवाज सुनी।

"गौरी….एएऐ……गौरी तुम सुन रही हो ना…." नंदू अंकल ने दोबारा कहा।

अब भी कोई जवाब नही आया, नंदू ने गौरी का हाथ पकड़ने की कोशिश की मगर सब हवा हवा से था, छू भी नही पाया।

लेकिन अपने हाथ वो पकड़ पा रहा था,और समीर को भी छू पा रहा था, हालांकि समीर को महसूस नही हो रहा था।

नंदू के कुछ समझ नही आया……नंदू चिल्लाने लगा- "गौरी मुझे सुनो….मेरी बात सुनो….मुझे देखो"  झील से आवाज टकरा टकरा के नंदू के कान में गूंज रही थी लेकिन और किसी को नही सुनाई दे रही थी।

गौरी आज समीर से नाराज थी, वो उससे थोड़ी दूरी बनाकर बैठ गयी,

"जब भी तू तकलीफ में था मेरे पास आता था। जब भी तुझे कोई भी चीज चाहिए होती थी तो मेरे पास आकर मुझे मांगता था, और जब वो पूरी हो जाती थी तो तू कहता था माँ से मांगी गई मन्नत हमेशा पूरी होती है। लेकिन कभी सोचा वो कैसे पूरी होती थी।…….तेरे पापा के कारण… तेरे पापा ने अपने दिल मे मुझे जगह दी है। जब भी मैं तेरी मन्नत सुनती हूँ तो तेरे पापा के दिल तक पहुंचती है वो बात, तूने मन्नत जरूर मुझसे मांगी होगी लेकिन वो पूरी हमेशा तेरे पापा ने ही कि है। और आज तू उनपर इतने सारे इल्जाम लगा आया है, ….कैसे सह पाएंगे वो ये सब… बाकी इल्जाम तो वो झूठ साबित कर देंगे, लेकिन मेरी मौत का इल्जाम जो लगाया है… उसका क्या करेंगे वो… वो तो बार बार एक ही बात सोच रहे है और खुद भी खुद को मेरी मौत का जिम्मेदार मानने लगे है।" गौरी ने कहा।
नंदू अंकल इस बार समीर के नही बल्कि समीर से कुछ दूर बैठी गौरी के बगल में जा बैठा।
झील के किनारे समीर के लिए सिर्फ समीर था, गौरी के नजर से गौरी और समीर, जबकि नंदू के नजर में पूरा एक परिवार एक साथ था, हालांकि तीनो एक दूसरे से अलग थे।


********


दूसरी तरफ नंदू के कानों में बार बार एक ही बात गूंज रही थी। समीर की कही बाते….

"क्यो किया तुमने ये सब"

" जरूर मेरी माँ भी तुम्हारी उन्ही हरकतों की वजह से मरी होगी"

" कहीं ये तो नही की उन्होंने आपको किसी के साथ देख लिया इसलिये खुदकुशी कर ली हो और आपने झूठ बोला कि मुझे जन्म देने में वो गुजर गई"

"हाथ मेरे पास भी है, हाथ मैं भी उठा सकता हूँ"

यही कुछ बातें बार बार नंदू को याद आ रही थी जिस वजह से नंदू के दिमाग ने काम करना ही छोड़ दिया। नंदू के समझ
में कुछ नही आ रहा था। ना उसे अब और जीने का मकसद नजर आ रहा था और ना ही आगे कभी कोई खुशी आने की उम्मीद नजर आ रही थी।

गौरी की तस्वीर के पास जाकर गौरी से माफी मांगते हुए कहा- "मुझे माफ़ कर दो गौरी….अब और तकलीफ सहन करने की शक्ति नही है मुझमें…… मैं भी तुम्हारी तरह इस बंधन से मुक्त होना चाहता हूँ"

नंदू की बात सुनकर यमराज ने कहा- " इस बंधन से तो मरने के बाद भी मुक्त नही सकते तुम….जिस तरह की मौत को तुमने चुना है ये सही रास्ता नही है अपने बच्चों को सही रास्ते पर लाने का….लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।"

दस मिनट बाद कमरे में अजीब से आवाज आई, जो एक ही बार जोर से आई , इशानी अपने कमरे में थी, उसे लगा शायद हॉल में समीर आ गए है तब वो चिल्लाए होंगे। लेकिन समीर हॉल में नही आये थे। फिर इशानी किचन की तरफ गयी और जब आवाज का पता नही लगा तो खिड़की से बाहर की तरफ झांकने लगी।

फिर उसे ना जाने क्या सुझा वो नंदू के कमरे की तरफ चल पड़ी। शायद वहाँ कोई गड़बड़ ना हो। इसी बहाने देख लेगी घर छोड़कर जा रहे है या उसे ही घर छोड़ने का ड्रामा करना पड़ेगा।


******


समीर अब भी झील किनारे बैठा था। बार बार इशानी का फोन आ रहा था, लेकिन समीर बार बार काट देता,लेकिन फिर भी फोन आ रहे थे तो गुस्से में आकर समीर ने मोबाइल ही पानी मे फेंक दिया। और अचानक पानी मे आ रही आसमान की परछाई , वो एक जगह स्थिर खड़े चाँद सितारे हिलने लगे….ऊपर के आसमान को देखा वो पहले की तरह खूबसूरत था, अधूरा चाँद और ढेर सारे तारे अब भी एक ही जगह थे। लेकिन जो झील में आसमान नजर आ रहा था वो समीर की जिंदगी की तरह बिखर चुकी थी।

नंदू अंकल गौरी के साथ बैठकर भी अकेला था, ये बात उसे  इसलिये भी खल रही थी क्योकि दोनो आत्माएं होकर भी मिल नही पा रही थी। आखिर ऐसा क्यो…… यही एक सवाल नंदू के मन मे था।
  अगर नंदू गौरी की आत्मा को देख सकता है तो गौरी भी नंदू की आत्मा को देख सकने में सक्षम होनी चाहिए थी।

तभी अचानक गौरी रोने लगी….उसे कोई ऐसी खबर लग चुकी थी जिसकी कल्पना अब तक किसी ने नही की थी।
और अचानक ही धुआं धुआं हो गयी। नंदू उठ खड़ा हुआ, और सोचने लगा कि शायद अब तक तो मैंने फांसी लगा लिया होगा….लेकिन ये समीर और कितनी देर बैठेगा यहां, इसे भी घर आने की होश नही है, मेरे से चार बाते गलत बोलकर इसका दिल भी दुखा है। वैसे इसकी गलती ही क्या थी जिसने तो बस भरोसा किया था उन दोनों पर, भरोसा करने को मैं गलत नही मानता"

अब तक झील में उतरा हुआ चाँद हिले जा रहा था। इशानी का फोन समीर के फोन से कनेक्ट नही हुआ तो उसने अपने मम्मी पापा को फोन कर दिया और उसके मम्मी पापा ने पुलिस को…………

थोड़ी देर में समीर उठा और घर की तरफ निकल पड़ा।

कहानी जारी है


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4 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:40 PM

Nice

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Hayati ansari

27-Nov-2021 01:40 PM

Nice

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Fiza Tanvi

08-Oct-2021 05:12 PM

Good

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